Sunday 27 April 2014

मित्रो बाल्यावस्था का ये समय घोर साधना के लिये  ही होत है 

प्यारे मित्रो संतो के मुखारबिन्दु  से हम प्रायः सुनते आये है कि इस अनमोल संसार जगत मे दो ही प्रकार से मनुष्य होते है| किसी सूफी सन्त के कहे अनुसार कि "हर सिक्के के दो ही पहलूँ होते है "

जिसका विवरण कबीर दास ने भि अपने रचना  के मध्य दर्शाया है "दो पाटन के बीच मे साबुत बचा न कोइ " ये दो पाटे कह लीजये य एक ही सिक्के के दो पहलू कह दीजिये शब्दोंका हेर फेर अवश्य है किन्तु भाव एक हि है इनके के दो प्रकार से प्राणी प्रदर्शित होते है ।

१=आस्तिक (देवता)
२=नास्तिक (असुर) 

आस्तिक अर्थात देवतत्व के मनुष्य भगवान के प्रति अनुरक्त होते है 
असुर अथवा नास्तिक होने के कारण वे मनुष्य परमात्मा मे विश्वास नहि करते और भौतिकतावादी हो कर विचरण करते है कामांध हो कर अन्य निर्दोषो को सताने मे आनन्द की अनुभति करते है ।
ये कलियुग के मनुष्य की दो प्रकार की श्रेणियाँ पाए जाति है ।
कलियुग कलह का युग है अतः कलह मे फँस कर असुर मनुष्य अपना एवं अपने साथियो को भि नर्क के भगीदार बना ले जाते है ।
जो सात्विक भगवत भक्त होते  है  वे अपने मित्रो बन्धुवों से प्रार्थना करते है "हे मित्रो ! आओ  हम सभी भागवत धर्म के अनुसार भगवान के चरित्र अमृत  का पान करे और उनकी भक्ती के वशीभूत हो कर कीर्तन भजन मे डूब कर भगवान विष्णु धाम चले ।मित्रो बाल्यावस्था का ये समय घोर साधना के लिये  ही होत है इस तपस्या मे योगियों  में योगी राज भगवान कृष्ण हमे सखा (मित्र ) के  रूप  में प्राप्त होंगे और हमारे परम लक्ष्य मनुष्य जीवन की सिद्धी भी खेल खेल मे करवा देंगे ।
अज्ञानी मित्र कहते है "अभी तो हमारा जीवन खेल कूद का है| अभी तो हम बाळक हि है भगवत धर्म तो चौथेपन की बात है बाल्य अवस्था मे साधना ,तपस्या का क्या काम ? योग तप ही नही तो योगीराज कृष्ण का क्य काम ।
उत्तर मिला मित्रो यदि तुम तनिक भी बुद्धिमान हुए तो बचपन से ही भगवत धर्म मे लग जाओ "
क्योकी भौतिक जगत विषयक विज्ञान तक ही ले जात है  भागवत धर्म मे दो बाते है भागवत कहते है भगवान को और धर्म क अर्थ है "विधि विधान " यही कारण है ये धर्म भि भगवान के है जो धर्म से हटा अर्थात विधी विधान क उलंघन किया तो भगवान रुष्ट हो जाते है और अपनी दया शक्ती देना बन्द कर देते है तब दीन हीन मनुष्य शव के समान हो जाता है 

योगी साधक गण अपने इस क्षण भंगुर शरीर से अन्धकार मय संसार से सिद्ध  हो कर अनंत कोटि ब्रह्माण्ड विचरण से  विराम पा जाता है|

                                 "जय श्री राम " 

उठ जाग मुसाफिर भोर भयी ,
                                                  अब रैन कहाँ तु सोवत है|
जो जागत है,सो पावत है,
                                                 जो सोवत है, वो खोवत है||
टुक नींद से अंखिया खोल जरा,  
                                               श्री राम चरण मे ध्यान लगा|
यह प्रीती करन की रीति नहि,
                                                   प्रभु जागत है तु सोवत है||
उठ जाग मुसाफिर भोर भई,
                                                     अब चैन कहे तु सोवत है|
जो जागत है सो पावत है ,                                    
                                                    जो सोवत है सब खोवत है||
                                                                                             आचार्य विमल त्रिपाठी